उत्तर प्रदेश में नागरिकता कानून के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शनों के पीछे पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) का हाथ होने की जानकारी केंद्रीय गृह मंत्रालय को मिली



 

उत्तर प्रदेश में नागरिकता कानून के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शनों के पीछे पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) का हाथ होने की जानकारी केंद्रीय गृह मंत्रालय को मिली है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि सीएए विरोधी हिंसा के पीछे पीएफआई का हाथ था और इसी ने देश के तीन वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, इंदिरा जयसिंह और दुष्यंत ए दवे को लाखों रुपये का भुगतान किया था।  वकील कपिल सिब्बल और दुष्यंत ए दवे ने एक चैनल से बातचीत के दौरान पीएफआई से पैसे लेने की बात स्वीकार की है। हालांकि उन्होंने कहा कि ये पैसे उनको हादिया केस में पैरवी के एवज में मिले हैं।

पीएफआई की गतिविधियों की जांच कर रही ईडी को पीएफआई और उससे जुड़े करीब 73 बैंक एकाउंट की जानकारी मिली है। इस मामले में रेहाब इंडिया फाउंडेशन का भी जिक्र ईडी ने किया है। ईडी के सूत्रों का कहना है कि करीब 120 करोड़ रुपये का फंड सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के लिए प्रयोग में लाया गया। 

गृह मंत्रालय को भेजे गए पत्र में ईडी ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ उत्तर प्रदेश में हुए प्रदर्शन और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के बीच सीधा संबंध बताया है। ईडी ने बैंक खातों में धन जमा करने की तारीखों और सीएए विरोध की तारीखों के बीच परस्पर संबंध दिखाया है।

 
कपिल सिब्बल ने दी सफाई
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और वकील कपिल सिब्बल ने सीएए विरोधी प्रदर्शनों के लिए पीएफआई से पैसा मिलने की बात स्वीकार की है। मगर उनका कहना है कि उन्हें यह पैसे हादिया केस में प्रोफेशनल फीस के तौर पर मिले हैं। यह पैसे उन्हें साल 2017 और 2018 में मिली है। उनका कहना है कि वह इस मामले में औपचारिक बयान जारी करेंगे। साथ ही सबूत के तौर पर हस्ताक्षरित चेक पेश करेंगे। 

यूपी हुई हिंसा के पीछे पीएफआई का हाथ: योगी सरकार
उत्तर प्रदेश सरकार शुरुआत से कह रही है कि राज्य में हुई हिंसा के पीछे पीएफआई का हाथ है। हालांकि संगठन ने खुद को एनजीओ बताया था। मगर ईडी के सूत्रों ने हिंसा में उसके हाथ होने की पुष्टि की है। ईडी ने गृह मंत्रालय को यह पत्र पश्चिम यूपी के कुछ जिलों में पीएफआई के बैंक खातों की जांच के बाद लिखा है।

जांच के दौरान ईडी ने पाया की पीएफआई से जुड़े बैंक खातों में बड़ी रकम हस्तांतरित की गई थी। पिछले साल सीएए के विरोध में हो रहे प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया था। जिसके कारण यूपी में कई स्थानों पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा था। इस महीने की शुरुआत में गृह मंत्रालय को यूपी सरकार से राज्य में पीएफआई की गतिविधियों को लेकर एक रिपोर्ट मिली थी।

यूपी के डीजीपी ओपी सिंह मे कहा था कि पीएफआई सीएए के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शनों में सक्रिय रूप से शामिल था। उन्होंने कहा था कि इस पार्टी के कुछ सदस्यों को गिरफ्तार किया है और इस संबंध में सबूत भी मौजूद हैं। उन्होंने गृह मंत्रालय को पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक पत्र भी लिखा था।


 



क्या है पीएफआई 



  • पीएफआई का पूरा नाम है- पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया है। यह चरमपंथी इस्लामी संगठन है।

  • साल 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (एनडीएफ) के मुख्य संगठन के रूप में पीएफआई का गठन किया गया था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।

  • एनडीएफ के अलावा कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी, तमिलनाडु के मनिथा नीति पासराई, गोवा के सिटिजन्स फोरम, राजस्थान के कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशनल सोसाइटी, आंध्र प्रदेश के एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस समेत अन्य संगठनों के साथ मिलकर पीएफआई ने कई राज्यों में अपनी पैठ बना ली है। 

  • पीएफआई खुद को न्याय, आजादी और सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले नव-समाज के आंदोलन के रूप में बताता है। इस संगठन की कई अलग-अलग शाखाएं भी हैं। जैसे महिलाओं के लिए- नेशनल वीमेंस फ्रंट और विद्यार्थियों/युवाओं के लिए कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया।

  • गठन के बाद से ही इस संगठन पर कई समाज विरोधी व देश विरोधी गतिविधियों के आरोप लगते रहे हैं। 

  • साल 2012 में केरल सरकार ने एक मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट से कहा था कि पीएफआई की गतिविधियां देश की सुरक्षा के लिए हानिकारक हैं।


उत्तर प्रदेश में पीएफआई



  • यह संगठन पिछले करीब दो सालों से उत्तर प्रदेश में अपने पैर पसार रहा है। इस संबंध में केंद्रीय एजेंसियों और उत्तर प्रदेश पुलिस के बीच खुफिया जानकारी भी साझा हुई। 

  • गृह मंत्रालय के अनुसार, नागरिकता कानून 2019 पर हुए हिंसक प्रदर्शनों के बीच उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, गोंडा, मेरठ, आजमगढ़, शामली, बाराबंकी, बहराइच, वाराणसी और सीतापुर के क्षेत्रों में पीएफआई की सक्रियता देखने को मिली।