एक महीने पहले पिता का इंतकाल हो चुका है। अम्मी बीमार हैं। जब परिवार में कोई कमाने वाला नहीं बचा तो अलीगढ़ में रहने वाले 10-12 वर्ष की उम्र के दो सगे भाई अपना और अम्मी का पेट भरने के लिए आलू बेचने निकल पड़े। दोनों अनूपशहर रोड से दस किमी दूर धनीपुर सब्जी मंडी तक ठेले को धक्का देकर पैदल जाते हैं और वहां से एक दो बोरी आलू लाद कर वापस ठेले को खींच कर लाते हैं। इस आलू को फेरी लगाकर बेचते हैं। कई बार पूरा दिन भूखे पेट, वो यही काम करते हैं, क्योंकि बीच में उन्हें कहीं कुछ खाने को नहीं मिलता है। आलू खरीदने के लिए भी वह पड़ोसियों से पैसे उधार लेकर जाते हैं। शाम को घर पहुंचने के बाद ही उन्हें कुछ खाने को मिलता है।
अलबरकात स्कूल के पीछे मौलाना आजाद नगर क्षेत्र स्थित राबिया मस्जिद के पास रहने वाले अरमान और नबी हुसैन मुफलिसी की ये मार झेल रहे हैं। कभी कभी अब्बू की याद में दोनों भाईयों की आंखें नम हो जाती हैं, लेकिन हिम्मत नहीं हारते हैं।
दोनों भाई बताते हैं कि अगर, लॉकडाउन न होता तो शायद पड़ोसी भी मदद करते, लेकिन अब सभी अपनी-अपनी रोटी का इंतजाम बुमश्किल कर पा रहे हैं तो उनकी मदद भला कौन करेगा? हां, कुछ पड़ोसी उन्हें पैसा जरूर उधार दे देते हैं। दोनों को अभी तक प्रशासन की ओर से भी राशन नहीं मिला है।
अलबरकात स्कूल के पीछे मौलाना आजाद नगर क्षेत्र स्थित राबिया मस्जिद के पास रहने वाले अरमान और नबी हुसैन मुफलिसी की ये मार झेल रहे हैं। कभी कभी अब्बू की याद में दोनों भाईयों की आंखें नम हो जाती हैं, लेकिन हिम्मत नहीं हारते हैं।
दोनों भाई बताते हैं कि अगर, लॉकडाउन न होता तो शायद पड़ोसी भी मदद करते, लेकिन अब सभी अपनी-अपनी रोटी का इंतजाम बुमश्किल कर पा रहे हैं तो उनकी मदद भला कौन करेगा? हां, कुछ पड़ोसी उन्हें पैसा जरूर उधार दे देते हैं। दोनों को अभी तक प्रशासन की ओर से भी राशन नहीं मिला है।
रविवार को अलबरकात स्कूल के सामने आलू के ठेले को धक्का देकर ले जा रहे दोनों भाइयों ने बताया कि वह मस्जिद के पास रहते हैं। अम्मी अफसाना घर में बीमार हैं। अब्बू शब्बीर एक महीने पहले ही बीमारी से चल बसे। उस वक्त भी बहुत संकट झेला था।
जब घर में खाने को कुछ नहीं बचा और भूखे मरने की नौबत आई तो पड़ोसियों से मशवरा कर आलू बेचने निकल पड़े हैं, जो कमाते हैं उसमें ही गुजारा कर रहे हैं। रविवार को उनका दोस्त तालिब भी उनके साथ गया था। ये बच्चे कहते हैं कि वो हर सुबह ऊपरवाले से करम की दुआ मांगते हैं और घर से निकल पड़ते हैं।
जब घर में खाने को कुछ नहीं बचा और भूखे मरने की नौबत आई तो पड़ोसियों से मशवरा कर आलू बेचने निकल पड़े हैं, जो कमाते हैं उसमें ही गुजारा कर रहे हैं। रविवार को उनका दोस्त तालिब भी उनके साथ गया था। ये बच्चे कहते हैं कि वो हर सुबह ऊपरवाले से करम की दुआ मांगते हैं और घर से निकल पड़ते हैं।